फ़जर की सुन्नत नियमित सुन्नतों में से पहली सुन्नत है जिसे बंदा दिन में सबसे पहले पढ़ता है ।
फ़जर की सुन्नत नियमित सुन्नतों में से पहली सुन्नत है जिसे बंदा दिन में सबसे पहले पढ़ता है । और भी कुछ सुन्नतें हैं जिनका बयान आगे आएगा ।
सुन्नते-मोअक्कदा: १२ रकअत है जो फ़र्ज़ नमाज़ से पहले और बाद में पढ़ी जाती हैं ।
उम्मे हबीबह (रज़ियल्लाहु अन्हा) कहती हैं कि मैं ने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम को ये फ़रमाते हुआ सुना: “जिसने दिन और रात में १२ रकअतें पढ़ी, तो उसके लिए जन्नत में एक घर बना दिया जाता है ।” (मुस्लिम : ७२८)
तिर्मिज़ी की हदीस में इसकी तफ़सील (ब्योरा) कुछ इस प्रकार से है: “ज़ुहर की फ़र्ज़ से पहले ४ रकअत और फ़र्ज़ के बाद २ रकअत और मग़रिब के बाद २ रकअत और ईशा के बाद २ रकअत और फ़जर में फ़र्ज़ से पहले २ रकअत । (तिर्मिज़ी ने न० ४१५ न० में ‘हसन सही’ कहा है)
सुन्नते-मोअक्कदा घर में पढ़ना अफ़ज़ल है ।
हज़रत ज़ैद बिन साबित (रज़ियल्लाहु अन्हु) बयान करते है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “ऐ लोगो! अपने घरों में नमाज़ पढ़ो, इसलिए कि मर्द की अफ़ज़ल नमाज़ उसके घर की नमाज़ है सिवाय फ़र्ज़ नमाज़ के ।” (बुख़ारी: ७२९०), (मुस्लिम: ७८१)
सुन्नते-मोअक्कदा में सबसे अहम् सुन्नत, फ़जर की सुन्नत है ।
सुन्नते-मोअक्कदा में सबसे अहम् सुन्नत, फ़जर की सुन्नत है । इसकी दलील:
क) हज़रत आएशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) बयान करती हैं कि आप सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम नवाफ़िल में जितना फ़जर की सुन्नत का एहतेमाम करते थे उतना किसी का नहीं करते ।” (बुख़ारी: १८३), (मुस्लिम: ७६३)
ख) हज़रत आएशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) बयान करती हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम न फ़रमाया: “फ़जर की दो रकअत दुनिया और इसमें जो कुछ भी है, उस से बेहतर है ।” (मुस्लिम: ७२५)
फ़जर की सुन्नत सफ़र और ग़ैर-सफ़र दोनों हालतों में पढ़नी है
फ़जर की सुन्नत सफ़र और ग़ैर-सफ़र दोनों हालतों में पढ़नी है, जैसा कि सही बुख़ारी और सही मुस्लिम में है । इसके अलावा दूसरी सुन्नते-मोअक्कदा: जैसे: ज़ुहर, मग़रिब और इशा की सुन्नतें, सफ़र में इनका छोड़ना बेहतर है ।
इसका सवाब बहुत ज़्यादा है ।
इसका सवाब बहुत ज़्यादा है । जैसा कि गुज़रा, दुनिया और इसमें जो कुछ भी है, उस से बेहतर है ।
हज़रत आएशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) बयान करती हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम न फ़रमाया: “फ़जर की दो रकअत दुनिया और इसमें जो कुछ भी है, उस से बेहतर है ।” (मुस्लिम: ७२५)
फ़जर की सुन्नत हलकी पढ़ना सुन्नत है ।
इसकी दलील: हज़रत आएशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) बयान करती हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम फ़जर की दो रकअत इतनी हलकी पढ़ते कि मैं कहती कि आपने सूरह फ़ातिहा पढ़ी या नहीं? ।” (बुख़ारी: ११७१), (मुस्लिम: ७२४)
लेकिन शर्त ये हैं कि नमाज़ इतनी हलकी न हो कि जो चीजें अनिवार्य और ज़रूरी हैं वह छूट जाएँ, इसलिए जल्दबाज़ी से रोका गया है ।
फ़जर की सुन्नत की पहली रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद ‘सूरह काफ़िरून’ और दूसरी रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद ‘सूरह इख़्लास’ पढ़ना सुन्नत है ।
फ़जर की सुन्नत की पहली रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद ‘सूरह काफ़िरून’ और दूसरी रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद ‘सूरह इख़्लास’ पढ़ना सुन्नत है । (मुस्लिम)
या पहली रकअत में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह बक़रह की आयत न० १३६ ‘कूलू आमन्ना बिल्लाही......पढ़े । (सूरतुल-बक़रह : १३६)
और दूसरी रकअत में ‘सूरह आले इमरान’ की आयत न० ५२ ‘कुल या अहलल्-किताबे तआलौ .......... पढ़े । (सूरह आले इमरान:५२) और यह हदीस सही मुस्लिम में हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से मौजूद है ।
इसलिए दोनों पर अमल करना चाहिए, कभी इसको पढ़े और कभी उसको पढ़े ।
फ़जर की सुन्नत के बाद दाएँ करवट लेटना सुन्नत है ।
इसकी दलील:
हज़रत आएशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) बयान करती हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम जब फ़जर की सुन्नत पढ़ लेते तो दाहिने करवट लेट जाते ।” (बुख़ारी: ११६०), (मुस्लिम: ७३६)
फ़जर की नमाज़ के बाद सूरज निकलने तक उसी जगह पर बैठे रहना सुन्नत है ।
जाबिर बिन समुरह (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि: “रसूल रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम नमाज़े-फ़जर के बाद सूरज निकलने तक उसी जगह बैठे रहते ।” (मुस्लिम: ६७०)
संपर्क करें
हमें
हम किसी भी समय आपके संचार और पूछताछ की क़दर करते हैं