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अफ़ज़ल समय में तहज्जुद पढ़न सुन्नत है ।
प्रश्न ये है रात में किस समय तहज्जुद पढ़ना अफ़ज़ल है?
जवाब: हमें मालूम होना चाहिए कि वित्र की नमाज़ का समय इशा नमाज़ के बाद से शुरू होता है और फ़जर तक रहता है, तो वित्र की नमाज़ इशा और फ़जर नमाज़ के बीच में पढ़ी जाएगी ।
इसकी दलील:
हज़रत आएशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) बयान करती हैं कि: “रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम इशा नमाज़ से फ़ारिग़ होने के बाद इशा और फ़जर के बीच में ११ रकआत तहज्जुद पढ़ते थे, हर दो रकरत के बाद सलाम फेर देते और एक रकअत वित्र पढ़ते थे ।” (बुख़ारी: २०३१), (मुस्लिम: ७३६)
जहाँ तक तहज्जुद पढ़ने का सबसे अफ़ज़ल समय का सवाल है तो वह है आधी रात के बाद अंतिम तिहाई का हिस्सा है ।
अर्थात्: आदमी रात को ६ भाग में बराबर-बराबर बांटे और प्रथम (शरू) के ३ भाग (यानी आधी रात) तक सोए और चौथे और पांचवे भाग में नमाज़ पढ़े और फिर रात के छटवें भाग में आराम करे ।
इसकी दलील: अब्दुल्लाह बिन अम्र (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) बयान करते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “अल्लाह तआला को दाऊद (अलैहिस्सलाम) का रोज़ा और नमाज़ बहुत पसंद है, वह आधी रात तक सोते फिर नमाज़ पढ़ते और फिर रात के छटवें पहर में आराम करते । और वह एक दिन रोज़ा रखते थे और एक दिन रोज़ा नहीं रखते थे ।” (बुख़ारी: ३४२०), (मुस्लिम: ११५९)
अगर कोई इस सुन्नत पर अमल करना चाहे तो वह रात का हिसाब कैसे करे?
रात को ६ भागों में बराबर-बराबर बाँटे, पहले ३ भाग (आधी रात) तक सोए, फिर चौथे और पाँचवे भाग में नमाज़ पढ़े और फिर छटवें भाग में आराम करे ।
इसी लिए हज़रत आएशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) की हदीस में है, वह कहती हैं कि: “मैंने रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम को सहर के समय हमेशा सोते हुए पाया ।”
(बुख़ारी: ११३३), (मुस्लिम: ७४२)
इसी तरीक़े पर अमल करते हुए एक मुस्लिम अफ़ज़ल समय में तहज्जुद की नमाज़ पढ़ सकता है, जैसे कि अब्दुल्लाह बिन अम्र (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) की हदीस में है जो अभी-अभी गुज़री है ।
ख़ुलासा: तहज्जुद किस समय में पढ़ना अफ़ज़ल है उसको तीन दर्जा में बाँटा जा सकता है ।
पहला दर्जा: पहले तीन भाग (आधी रात) तक सोए, फिर चौथे और पाँचवे भाग में नमाज़ पढ़े और फिर छटवें भाग में आराम करे । जैसे कि अभी-अभी गुज़रा ।
इसकी दलील: अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन अल्-आस (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) की सदीस जो अभी कुछ पहले गुज़री ।
दूसरा दर्जा: रात की अंतिम तिहाई पहर में नमाज़ पढ़े ।
इसकी दलील:
अबू-हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) बयान करते है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “जब रात का अंतिम पहर होता है तब अल्लाह तआला हर रात में समाए-दुनिया (पहले आसमान) पर उतरता है और कहता है: “कोई है जो मुझे पुकारे और मैं उसकी पुकार को स्वीकार (क़बूल) करूं, कोई है जो मुझ से माँगे और मैं उसकी माँग को पूरा करूं, कोई है जो मुझ से माफ़ी चाहे और मैं उसे माफ़ कर दूँ ।” (बुख़ारी: ११४५), (मुस्लिम: ७५८) ऐसा ही हज़रत जाबिर (रज़ियल्लाहु अन्हु) की हदीस में है जो आने वाली है ।
अगर इस बात का डर हो कि वह रात के अंतिम पहर में बेदार नहीं हो सकता है तो रात के शुरू में पढ़ ले या रात के किसी भी समय पढ़ ले ।” और यही तीसरा दर्जा है ।”
तीसरा दर्जा: रात के शुरू में या रात के जिस भाग में आसानी हो उसमें तहज्जुद पढ़ ले ।
इसकी दलील:
हज़रत जाबिर (रज़ियल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “जिसे इस बात का डर हो कि रात के अंतिम पहर में नहीं उठ सकेगा तो उसको शुरू में ही वित्र पढ़ लेनी चाहिए, और जो रात के अंतिम पहर में पढ़ने में रुची रखता हो तो उसे चाहिए कि रात के अंतिम पहर में वित्र पढ़े, इसलिए कि रात की अंतिम नमाज़ में फ़रिश्ते हाज़िर होते है और यह अफ़ज़ल है ।” (मुस्लिम: ७५५)
रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने अबू-ज़र, अबू-दर्दा और अबू-हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हुम) को ये वसीयत फ़रमाई: “सोने से पहले वित्र पढ़ लिया करो ।”
अबू-ज़र (रज़ियल्लाहु अन्हु) की हदीस जिसे (निसाई फिस्-सुननुल्-कुब्रा: २७१२) में बयान किया है और शैख़ अल्बानी (रहेमहुल्लाह) ने सहीहा: २१६६ में सही कहा है ।
अबू-दर्दा (रज़ियल्लाहु अन्हु) की हदीस अहमद ने: २७४८१ और अबू-दाऊद ने: १४३३ में बयान किया है और शैख़ अल्बानी (रहेमहुल्लाह) ने ‘सही अबू-दाऊद’ : ५/१७७ में ‘सही’ कहा है ।
और अबू-हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) की हदीस मुस्लिम ने: ७३७ में बयान किया है ।