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सना (इस्तिफ़ताह) पढ़ना सुन्नत है ।
सना (इस्तिफ़ताह) की कई दुआएँ हैं, इसलिए बदल-बदल कर पढ़ना मुस्तहब है ।
क) ‘सुब्हान कल्लाहुम्म व बिहम्दिक व तबार कस्मुक व तआला जद्दुक वला इला ह ग़ैरूक’ ।” (अहमद: ११४७३), (अबू-दाऊद: ७७६), (तिर्मिज़ी:२४३), (निसाई: ९००) हदीस में थोड़ी कमज़ोरी है, लेकिन इब्ने हजर (रहेमहुल्लाह) ने इस हदीस को हसन कहा है । (नताएजुल्-अफ़्कार १/४१२ में देखिए)
ख) ‘अल्हम्दु लिल्लाहे हम्दन् कसीरन् तैय्येबन् मोबारकन् फ़ीहे’ ।”
इसकी फ़ज़ीलत के बारे में रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “मैंने १२ फ़रिश्तों को देखा जो इस दुआ को ऊपर पहुँचाने केलिए एक-दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे ।” (मुस्लिम: ६००)
ग) “अल्लाहुम्म बाइद बैनी व बैन ख़ताया य, कमा बाअत्त बैनल-मशरेक़े वल्मग़रेबे, अल्लाहुम्म नक्क़ेनी मिन-ख़ताया य, कमा युनक्क़स्सौबुल अब्यज़ो मिनद्दनसे, अल्लाहुम्मग्सिलनी मिन् ख़ताया या बिल्माए वस्सलजे वल्बरदे ।” (बुख़ारी: ७४४), (मुस्लिम: ५९८)
घ) ‘अल्लाहु-अक्बर कबीरा, वल्-हम्दो लिल्लाहे कसीरा, व सुब्हानल्लाहे बुक्-रतन्-व असीला’ ।”
रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने इसकी फ़ज़ीलत के बारे में फ़रमाया: “मुझे आश्चर्य (ताज्जुब) हुआ कि इनके लिए आसमान के दरवाज़े खोल दिए गए ।” (मुस्लिम: ६०१)