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brightness_1 ‘तक्बीरे तहरीमा’ कहते हुए दोनों हाथ उठाना ।

अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) बयान करते हैं कि “रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम अपने दोनों हाथों को कंधों के बराबर उठाते थे, जब नमाज़ शुरू करते और जब रुकूअ केलिए तक्बीर कहते और जब रुकूअ से सर उठाते तब भी दोनों हाथों को उठाते और ‘समिअल्लाहु लिमन् हमिदह, रब्बना व लकल्-हम्द’ कहते । और सज्दा करते हुए आप ऐसा नहीं करते थे ।” (बुख़ारी: ७३५), (मुस्लिम: ३९०)

इब्ने हुबैरह (रहेमहुल्लाह) ने कहा: “तमाम ओलामा का इस बात पर इत्तेफ़ाक़ (सहमत) है कि ‘तक्बीरे तहरीमा’ कहते हुए हाथ उठाना सुन्नत है, वाजिब नहीं ।” (अल्-इफ़्साह १/१२३ में देखिए)

नमाज़ में चार जगहों पर दोनों हाथों को उठाना (रफ़ुल-यदैन) हदीस से साबित है:

१) तक्बीरे तहरीमा कहते हुए ।

२) रुकूअ करते हुए ।

३) रुकूअ से सर उठाते हुए । इन तीनों की दलील इब्ने-उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) की हदीस में है जो बुख़ारी और  मुस्लिम में है ।

४) पहले तशह्हुद से तीसरी रकअत केलिए उठते हुए । इसकी दलील, इब्ने उमर (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) की हदीस है, जो बुख़ारी में है ।

brightness_1 बाएँ हाथ को दाहिने हाथ से पकड़ना सुन्नत है ।

पहला तरीक़ा:दायाँ हाथ बाएँ हाथ पर रखना ।

हज़रत वाएल बिन हुज्र (रज़ियल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि मैंने रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम को नमाज़ पढ़ते हुए इस हाल में देखा कि आप अपने दाहिने हाथ से बाएँ हाथ को पकड़े हुए थे ।” (अबू-दाऊद: ७५५), (निसाई: ८८८) और शैख़ अल्बानी (रहेमहुल्लाह) ने ‘सही’ कहा है ।

दूसरा तरीक़ा: दाहिना हाथ बाएँ हाथ की कलाई पर रखना ।

सहल बिन साअ्द (रज़ियल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं: “नमाज़ में लोगों को हुक्म दिया जाता कि आदमी अपन दाहिना हाथ बाएँ हाथ की कलाई पर रखे ।” (बुख़ारी: ७४०)

इसलिए चाहिए कि कभी पहला तरीक़ा अपनाए और कभी दूसरा, ताकि दोनों सुन्नतों पर अमल हो जाए ।

 

brightness_1 सना (इस्तिफ़ताह) पढ़ना सुन्नत है ।

सना (इस्तिफ़ताह) की कई दुआएँ हैं, इसलिए बदल-बदल कर पढ़ना मुस्तहब है ।  

क) ‘सुब्हान कल्लाहुम्म व बिहम्दिक व तबार कस्मुक व तआला जद्दुक वला इला ह ग़ैरूक’ ।” (अहमद: ११४७३), (अबू-दाऊद: ७७६), (तिर्मिज़ी:२४३), (निसाई: ९००) हदीस में थोड़ी कमज़ोरी है, लेकिन इब्ने हजर (रहेमहुल्लाह) ने इस हदीस को हसन कहा है । (नताएजुल्-अफ़्कार १/४१२ में देखिए)

ख) ‘अल्हम्दु लिल्लाहे हम्दन् कसीरन् तैय्येबन् मोबारकन् फ़ीहे’ ।”

इसकी फ़ज़ीलत के बारे में रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “मैंने १२ फ़रिश्तों को देखा जो इस दुआ को ऊपर पहुँचाने केलिए एक-दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे ।” (मुस्लिम: ६००)

ग) “अल्लाहुम्म बाइद बैनी व बैन ख़ताया य, कमा बाअत्त बैनल-मशरेक़े वल्मग़रेबे, अल्लाहुम्म नक्क़ेनी मिन-ख़ताया य, कमा युनक्क़स्सौबुल अब्यज़ो मिनद्दनसे, अल्लाहुम्मग्सिलनी मिन् ख़ताया या बिल्माए वस्सलजे वल्बरदे ।” (बुख़ारी: ७४४), (मुस्लिम: ५९८)

घ) ‘अल्लाहु-अक्बर कबीरा, वल्-हम्दो लिल्लाहे कसीरा, व सुब्हानल्लाहे बुक्-रतन्-व असीला’ ।”

रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने इसकी फ़ज़ीलत के बारे में फ़रमाया: “मुझे आश्चर्य (ताज्जुब) हुआ कि इनके लिए आसमान के दरवाज़े खोल दिए गए ।” (मुस्लिम: ६०१)

 

brightness_1 बिस्मिल्लाह पढ़ना ।

इस्तेआज़ह के बाद ‘बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम’ पढ़ना सुन्नत है ।

दलील: नोऐम (रज़ियल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि “मैंने अबू-हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) के पीछे नमाज़ पढ़ी तो उन्होंने ‘बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम’ पढ़ी, फिर सूरह-फ़ातिहा पढ़ी...इसी हदीस में है जब उन्होंने सलाम फेर लिया तो फ़रमाया: “उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है! तुम सब में मेरी नमाज़ रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम की नमाज़ की जैसी है ।” (निसाई: ९०६) र इब्ने खोज़ैमह ने १/ २५१ में ‘सही’ कहा है । दार-क़ुतनी ने इस हदीस को ‘सही’ कहा है और इसके सब रावी सेक़ा हैं । (अस्सुनन्: २/४६)                 

बिस्मिल्लाह पढ़ना वाजिब नहीं है इसलिए कि इसकी कोई दलील नहीं है, और न ही रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने यह उस आदमी को सिखलाई थी, जिन्होंने नमाज़ अच्छे तरीक़े से नहीं पढ़ी थी, आपने उन्हें केवल सूरह फ़ातिहा सिखलाई थी, जैसा कि अबू-हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) की हदीस में है ।” (बुख़ारी: ७५७), (मुस्लिम: ३९७)

brightness_1 सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह पढ़ना ।

अक्सर ओलामा का यही कहना है कि सूरह फ़ातिहा के बाद पहली २ रकतों में सूरह पढ़ना सुन्नत है ।

हज़रत अबू क़तादा (रज़ियल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ज़ुहर की पहली २ रकतों में सूरह फ़ातिहा के बाद और २ सूरतें पढ़ते थे, पहली में लंबी सूरह पढ़ते और दूसरी में उस से छोटी पढ़ते थे ।” (बुख़ारी: ७५९), (मुस्लिम: ४५१)

जेहरी नमाज़ में मुक़तदी सूरह फ़ातिहा के अलावा कोई सूरह नहीं पढ़ेगा, बल्कि इमाम की तिलावत सुनेगा ।

इब्ने-क़ुदामा (रहेमहुल्लाह) ने कहा: “हरेक नमाज़ की पहली २ रकतों में सूरह फ़ातिहा के बाद सूरह पढ़ना सुन्नत है, और इसमें किसी को कोई इख्तेलाफ़ नहीं ।” (अल्-मुग्नी १/५६८ में देखिए)