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दिन और रात के अज़कार दिन और रात के अज़कार ( उसकी रकअतों की तादाद 4 अध्याय )

1 टाइम्स (कई बार)

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 أَصْبَحْنَا وَأَصْبَحَ الْمُلْكُ لِلَّهِ، وَالْحَمْدُ لِلَّهِ لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ، اللهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ مِنْ خَيْرِ مَا فِي هَذَا الْيَوم وَخَيْر مَا بعدِه، وَأَعُوذُ بِك مِنْ شَرِّ مَا فِي هَذا اليَوم وَشَر مَا بَعْدِه، اللهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْكَسَلِ،  وَالْهَرَمِ، وَسُوءِ الْكِبَرِ، وَفِتْنَةِ الدُّنْيَا، وَعَذَابِ الْقَبْرِ 

अम्सैना व अम्सल्-मुल्को लिल्लाह, वल्हम्दो लिल्लाह, लाइला ह इल्लल्लाहु वहदहू लाशरीक लहु, अल्लाहुम्म इन्नी अस्अलुक मिन् ख़ैरे हाज़ेहिल्-लैलह, ख़ैरे मा फ़ीहा, व अउज़ु बिक मिन् शर्रेहा व शर्रे मा माफ़ी हा, अल्लाहुम्म इन्नी अउज़ु बिक मिनल् कसले वल्-हरमे, व सूइल्-किबरे, व फ़ित्नतिद्दुन्या, वा अज़ाबिल्-ब्रे

सुबह को: ‘अस्बहना व अस्बहल् मुल्को लिल्लाह ..... , अस्अलुक ख़ैर माफ़ी हाज़ल् यौम, व ख़ैर मा बा'दहु, व अउज़ु बिक मिन् शर्रे माफ़ी हाज़ल् यौम, व शर्रे मा बा'दहु .....कहे ।” (मुस्लिम: ७६३)

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1 टाइम्स (कई बार)

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اللَّهُمَّ أَنْتَ رَبِّي لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ خَلَقْتَنِي، وَأَنَا عَبْدُكَ,وَأَنَا عَلَى عَهْدِكَ وَوَعْدِكَ مَا اسْتَطَعْتُ، أَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا صَنَعْتُ, أَبُوءُ لَكَ بِنِعْمَتِكَ عَلَيَّ، وَأَبُوءُ لَكَ بِذَنْبِي فَاغْفِرْ لِي فَإِنَّهُ لَا يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلَّا أَنْتَ

सैयेदुल्-इस्तिग़फ़ार: ‘अल्लाहुम्म अन्त रब्बी, ला इला ह इल्ला अन्त, ख़ल्क्तनी व अन अब्दोक व अन अला अह्दिक व वाअ्दिक मस्तताअ्तो, अऊज़ुबिक मिन् शर्रे मा सनाअ्तो, अबूओ ल क बि निअ्मतिक अलै-य व अबूओ ल क बि बिज़म्बी, फ़ग्फ़िरली, फ़इन्नहु ला याग्फ़े रूज्ज़ोनूब इल्ला अन्त ।”

रसूल रसूल रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया:जिसने इस दुआ को सुबह में पूरे यक़ीन और विश्वास के साथ पढ़ा और शाम होने से पहले उसकी मौत हो गई तो वह जन्नत में जाएगा और यही दुआ किसी ने रात में पूरे यक़ीन और विश्वास के साथ पढ़ा और सुबह होने से पहले उसकी मौत हो गई तो वह जन्नत में जाएगा ।” (बुख़ारी: ६३०६)

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1 टाइम्स (कई बार)

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اللَّهُمَّ فَاطِرَ السَّمَوَاتِ وَالْأَرْضِ، عَالِمَ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ، لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ رَبَّ كُلِّ شَيْءٍ وَمَلِيكَهُ، أَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ نَفْسِي وَمِنْ شَرِّ الشَّيْطَانِ وَشِرْكِهِ، وَأَنْ أَقْتَرِفَ عَلَى نَفْسِي سُوءًا، أَوْ أَجُرَّهُ إِلَى مُسْلِمٍ

अल्लाहुम्म फ़ातिरस्समावाते वल्-अर्ज़े, आलिमल् ग़ैबे वश्शहादते, ला इला ह इल्ला अन्त, रब्ब कुल्ले शैइन् व मलीकहु, अऊज़ुबिक मिन् शर्रे नफ़्सी व मिन् शर्रेश्शैताने व शिर्केहि, व अन् अक्तरि अला नफ़्सी सू-अन्, औ अजुर्रहु एला मुस्लिम’

 रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया“इस दुआ को सुबह, शाम और सोते समय पढ़ लिया करो ।” (अहमद : ६५९७), (अबू-दाऊद: ५०६७), (तिर्मिज़ी:३५२९), (निसाई: ७६९९)  और इब्ने बा (रहेमहुल्लाह) ने इसकी ‘सनद’ को ‘सही’ कहा है

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1 टाइम्स (कई बार)

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اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الْعَافِيَةَ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ، اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الْعَفْوَ وَالْعَافِيَةَ فِي دِينِي وَدُنْيَايَ، وَأَهْلِي وَمَالِي، اللَّهُمَّ اسْتُرْ عَوْرَاتِي، وَآمِنْ رَوْعَاتِي، اللَّهُمَّ احْفَظْنِي مِنْ بَيْنِ يَدَيَّ وَمِنْ خَلْفِي، وَعَنْ يَمِينِي وَعَنْ شِمَالِي، وَمِنْ فَوْقِي، وَأَعُوذُ بِعَظَمَتِكَ أَنْ أُغْتَالَ مِنْ تَحْتِي

अल्लाहुम्म इन्नि अस्अलुकल् आफ़ियत फ़िद्दुन्या वल् आख़िरते, अल्लाहुम्म इन्नि अस्अलुकल् अफ़व वल् आफ़ियत फ़ी दीनी व दुन्याय व अहली व माली, अल्लाहुम्मस्तुर औराती व आमिन् रौआती, अल्लाहुम्मह्फ़ज़्नी मिन् बैन यदैय व मिन् ख़ल्फ़ी व अन् यमीनी अ अन् शिमाली व मिन् फ़ौक़ी व अऊज़ो बि अज़मतिक अन् उग्ताल मिन् तह्ती । (अहमद: ४७८५), (अबू-दाऊद: ५०७४), (निसाई फ़िस्-सुननुल्-कुब्रा: १०४०१), (इब्ने माजह: ३८७१) और हाकिम ने ‘सही’ कहा है ।

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