10 टाइम्स (कई बार)
لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
‘लाइला ह इल्लल्लाहु वहदहू ला शरीक लहु लहुल्मुल्कु व लहुल् हम्दु वहुव अला कुल्लि शैइन क़दीर’ । (१० बार)
जिसने सुबह को १० बार यह दुआ पढ़ी, उसको १०० नेकियाँ (पुण्य) मिलती हैं, और १०० गुनाह (पाप) मिटा दिए जाते हैं, और एक ग़ुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलता है और पूरे दिन उसकी हिफ़ाज़त की जाती है । और अगर शाम को भी इसी तरह पढ़ ले तो ऐसे ही फ़ायदे होंगे ।” (अहमद: ८७१९) इब्ने बाज़ (रहेमहुल्लाह) ने इसकी ‘सनद’ को ‘हसन’ कहा है ।
1 टाइम्स (कई बार)
أَمْسَيْنَا وَأَمْسَى الْمُلْكُ لِلَّهِ، وَالْحَمْدُ لِلَّهِ لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ مِنْ خَيْرِ هَذِهِ اللَّيْلَةِ وَخَيْرِ مَا فِيهَا، وَأَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّهَا وَشَرِّ مَا فِيهَا، اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الْكَسَلِ، وَالْهَرَمِ، وَسُوءِ الْكِبَرِ، وَفِتْنَةِ الدُّنْيَا، وَعَذَابِ الْقَبْرِ
‘अम्सैना व अम्सल्-मुल्को लिल्लाह, वल्हम्दो लिल्लाह, लाइला ह इल्लल्लाहु वहदहू लाशरीक लहु, अल्लाहुम्म इन्नी अस्अलुक मिन् ख़ैरे हाज़ेहिल्-लैलह, व ख़ैरे मा फ़ीहा, व अउज़ु बिक मिन् शर्रेहा व शर्रे मा माफ़ी हा, अल्लाहुम्म इन्नी अउज़ु बिक मिनल् कसले वल्-हरमे, व सूइल्-किबरे, व फ़ित्नतिद्दुन्या, वा अज़ाबिल्-क़ब्रे ।’
सुबह को: ‘अस्बहना व अस्बहल् मुल्को लिल्लाह ..... , अस्अलुक ख़ैर माफ़ी हाज़ल् यौम, व ख़ैर मा बा'दहु, व अउज़ु बिक मिन् शर्रे माफ़ी हाज़ल् यौम, व शर्रे मा बा'दहु .....कहे ।” (मुस्लिम: ७६३)
1 टाइम्स (कई बार)
اللَّهُمَّ أَنْتَ رَبِّي لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ خَلَقْتَنِي، وَأَنَا عَبْدُكَ، وَأَنَا عَلَى عَهْدِكَ وَوَعْدِكَ مَا اسْتَطَعْتُ، أَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ مَا صَنَعْتُ، أَبُوءُ لَكَ بِنِعْمَتِكَ عَلَيَّ، وَأَبُوءُ لَكَ بِذَنْبِي فَاغْفِرْ لِي فَإِنَّهُ لَا يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلَّا أَنْتَ
‘सैयेदुल्-इस्तिग़फ़ार: ‘अल्लाहुम्म अन्त रब्बी, ला इला ह इल्ला अन्त, ख़ल्क्तनी व अन अब्दोक व अन अला अह्दिक व वाअ्दिक मस्तताअ्तो, अऊज़ुबिक मिन् शर्रे मा सनाअ्तो, अबूओ ल क बि निअ्मतिक अलै-य व अबूओ ल क बि बिज़म्बी, फ़ग्फ़िरली, फ़इन्नहु ला याग्फ़े रूज्ज़ोनूब इल्ला अन्त ।”
रसूल रसूल रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “जिसने इस दुआ को सुबह में पूरे यक़ीन और विश्वास के साथ पढ़ा और शाम होने से पहले उसकी मौत हो गई तो वह जन्नत में जाएगा । और यही दुआ किसी ने रात में पूरे यक़ीन और विश्वास के साथ पढ़ा और सुबह होने से पहले उसकी मौत हो गई तो वह जन्नत में जाएगा ।” (बुख़ारी: ६३०६)
1 टाइम्स (कई बार)
اللَّهُمَّ بِكَ أَمْسَيْنَا وَبِكَ أَصْبَحْنَا وَبِكَ نَحْيَا وَبِكَ نَمُوتُ وَإِلَيْكَ الْمَصِير
सुबह में, ‘अल्लाहुम्म बि-क अस्बहना व बि-क अम्सैना व बि-क नह्-या व बि-क नमूतो व एलैकन्नोशूर’ पढ़ना ।
और शाम में 'अल्लाहुम्म बि-क अम्सैना व बिक अस्बहना, व बि-क नह्-या व बि-क नमूतो व एलैकल्-मसीर’ पढ़े । (अबू-दाऊद: ५०६८), (तिर्मिज़ी:३३९१), (निसाई फ़िस्-सुननुल्-कुब्रा: ९८३६), (इब्ने माजह: ३८६८) और इब्ने बाज़ (रहेमहुल्लाह) ने इसकी ‘सनद’ को ‘सही’ कहा है ।
1 टाइम्स (कई बार)
اللَّهُمَّ فَاطِرَ السَّمَوَاتِ وَالْأَرْضِ، عَالِمَ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ، لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ رَبَّ كُلِّ شَيْءٍ وَمَلِيكَهُ، أَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ نَفْسِي وَمِنْ شَرِّ الشَّيْطَانِ وَشِرْكِهِ، وَأَنْ أَقْتَرِفَ عَلَى نَفْسِي سُوءًا، أَوْ أَجُرَّهُ إِلَى مُسْلِمٍ
‘अल्लाहुम्म फ़ातिरस्समावाते वल्-अर्ज़े, आलिमल् ग़ैबे वश्शहादते, ला इला ह इल्ला अन्त, रब्ब कुल्ले शैइन् व मलीकहु, अऊज़ुबिक मिन् शर्रे नफ़्सी व मिन् शर्रेश्शैताने व शिर्केहि, व अन् अक्तरिफ़ अला नफ़्सी सू-अन्, औ अजुर्रहु एला मुस्लिम’ ।
रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “इस दुआ को सुबह, शाम और सोते समय पढ़ लिया करो ।” (अहमद : ६५९७), (अबू-दाऊद: ५०६७), (तिर्मिज़ी:३५२९), (निसाई: ७६९९) और इब्ने बाज़ (रहेमहुल्लाह) ने इसकी ‘सनद’ को ‘सही’ कहा है ।
3 टाइम्स (कई बार)
بِسْمِ اللَّهِ الَّذِي لَا يَضُرُّ مَعَ اسْمِهِ شَيْءٌ فِي الْأَرْضِ وَلَا فِي السَّمَاءِ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ
“जिसने सुबह और शाम में ‘बिस्मिल्ला हिल्लज़ी ला यज़ुर्रो मअस्मिहि शैउन् फ़िल् अर्ज़े वला फ़िस्समा, व हुवस्समी उल् आलीम्’ ३ बार इस दुआ को पढ़ा, उसको कोई चीज़ नुक़सान (हानि) नहीं पहुँचाएगी ।” (अहमद: ४४६), (तिर्मिज़ी:१०१७९), (इब्ने माजह: ३८६९) इमाम तिर्मिज़ी ने ‘हसन सही’ कहा है तथा इब्ने बाज़ (रहेमहुल्लाह) ने भी यही कहा है ।
3 टाइम्स (कई बार)
رَضِيتُ بِاللَّهِ رَبًّا، وَبِالْإِسْلَامِ دِينًا، وَبِمُحَمَّدٍ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ نَبِيًّا
“जिसने सुबह और शाम में ‘रज़ीतो बिल्लाहे रब्बन् व बिल् इस्लामे दीनन् व बि मुहम्मदिन् सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम नबीय्यन्’ ३ बार कहा, अल्लाह तआला उसको क़यामत के दिन ज़रूर खुश कर देगा ।” (अहमद: १८९६७), (तिर्मिज़ी: ३३८९), (इब्ने माजह: ३८७०) और इब्ने बाज़ (रहेमहुल्लाह) ने इसकी ‘सनद’ को ‘सही’ कहा है ।
1 टाइम्स (कई बार)
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الْعَافِيَةَ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ، اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ الْعَفْوَ وَالْعَافِيَةَ فِي دِينِي وَدُنْيَايَ، وَأَهْلِي وَمَالِي، اللَّهُمَّ اسْتُرْ عَوْرَاتِي، وَآمِنْ رَوْعَاتِي، اللَّهُمَّ احْفَظْنِي مِنْ بَيْنِ يَدَيَّ وَمِنْ خَلْفِي، وَعَنْ يَمِينِي وَعَنْ شِمَالِي، وَمِنْ فَوْقِي، وَأَعُوذُ بِعَظَمَتِكَ أَنْ أُغْتَالَ مِنْ تَحْتِي
अल्लाहुम्म इन्नि अस्अलुकल् आफ़ियत फ़िद्दुन्या वल् आख़िरते, अल्लाहुम्म इन्नि अस्अलुकल् अफ़व वल् आफ़ियत फ़ी दीनी व दुन्याय व अहली व माली, अल्लाहुम्मस्तुर औराती व आमिन् रौआती, अल्लाहुम्मह्फ़ज़्नी मिन् बैन यदैय व मिन् ख़ल्फ़ी व अन् यमीनी अ अन् शिमाली व मिन् फ़ौक़ी व अऊज़ो बि अज़मतिक अन् उग्ताल मिन् तह्ती । (अहमद: ४७८५), (अबू-दाऊद: ५०७४), (निसाई फ़िस्-सुननुल्-कुब्रा: १०४०१), (इब्ने माजह: ३८७१) और हाकिम ने ‘सही’ कहा है ।
1 टाइम्स (कई बार)
أَمْسَيْنَا عَلَى فِطْرَةِ الْإِسْلَامِ، وَكَلِمَةِ الْإِخْلَاصِ، وَدِينِ نَبِيِّنَا مُحَمَّدٍ - صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ - وَمِلَّةِ أَبِينَا إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا, وَمَا كَانَ مِنْ الْمُشْرِكِينَ
रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम सुबह के समय ‘अस्बह् ना अला फ़ित्रतिल् इस्लाम, व अला कलेमतिल् एख़्लास, व अला दीने नबीय्येना मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) व अला मिल्लते अबीना इब्राहीम हनीफ़न वमा का-न मिनल् मुश्रेकीन्’ और शाम के समय ‘अम्सैना अला फ़ित्रतिल् इस्लाम ....।” पढ़ते थे ।
और इब्ने बाज़ (रहेमहुल्लाह) ने इसकी ‘सनद’ को ‘सही’ कहा है ।
1 टाइम्स (कई बार)
يَا حَيُّ يَا قَيُّومُ بِرَحْمَتِكَ أَسْتَغِيثُ أَصْلِحْ لِي شَأْنِي كُلَّهُ، وَلَا تَكِلْنِي إِلَى نَفْسِي طَرْفَةَ عَيْنٍ
‘या हैयो या क़ैय्यूम बिरह्मतिक अस्तगीष, अस्लेह् ली शानी कुल्लहु व ला तकिल्नी एला नफ़्सी तर्फ़त अैन्’ । (निसाई: १०४०५), (बज्ज़ार २/२८२) इब्ने हजर और शैख़ अल्बानी (रहेमहुल्लाह) ने ‘हसन’ कहा है । (नताएजुल्-अफ़्कार १७७ और सिल्-सलतुल्-अहादीस अस्-सहीहा १/४४९ में देखिए)
7 टाइम्स (कई बार)
حَسْبِيَ الله لاَ إِلهَ إِلاَّ هُوَ عَلَيْهِ تَوَكَّلتُ وَهُوَ رَبُّ الْعَرشِ الْعَظِيمِ
यदि किसी ने ‘हस्बियल्लाहो लाइला ह इल्ला हुव, अलैहि तवक्कल्तो, व हुव रब्बुल्-अर्शिल अज़ीम’ ७ बार पढ़े, अल्लाह तआला उसका दु:ख दूर करेगा और उसके लिए काफ़ी होगा । (अबू-दाऊद: ५०८१), इस हदीस को अबू-दर्दा (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने बयान किया है । ये हदीस मौक़ुफ़न ‘सही’ है और उसके सब रावी षिक़ात हैं । शैख़ अल्बानी (रहेमहुल्लाह) ने इसको मरफ़ुअ का हुक्म बयान किया है । (सिल्-सलतुल्-अहादीस अस्-सहीहा ११/४४९ में देखिए)