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बार-बार दुआ करना ।
इसकी दलील: हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियाल्लाहु अन्हुमा) की हदीस जो गुज़री, जिसमें आप सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने दुआ फ़रमाई: “ऐ अल्लाह! तू ने मुझसे जो वादा किया था उसे पूरा फ़रमा, ऐ अल्लाह! मुझसे तू ने जो देने का वादा किया था वह मुझे अता कर, अपने दोनों हाथों को फैलाए अपने रब को पुकारते रहे, यहाँ तक कि आप सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम की चादर कंधों से गिर गई, इतने में अबू-बकर (रज़ियाल्लाहु अन्हु) आगे बढ़े, फिर आप सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम से लिपट गए और कहा: “ऐ अल्लाह के नबी! आपकी दुआ काफ़ी है ।” (मुस्लिम: १७६३)
हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ियाल्लाहु अन्हु) की हदीस में है, जब आप सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने दौस केलिए दुआ की तो यूँ की: “ऐ अल्लाह! दौस को हेदायत दे और उन्हें ले आ, ऐ अल्लाह! दौस को हेदायत दे और उन्हें ले आ।” (बुख़ारी : २९३७), (मुस्लिम: २५२४)
सही मुस्लिम की एक रिवायत में है: “आदमी लंबी यात्रा (सफ़र) करता है धूल और मिट्टी से लत-पत बाल, अपने दोनों हाथों को आकाश की ओर उठाता है और कहता है: ‘ऐ रब, ऐ रब ।” (मुस्लिम: १०१५) इसमें भी बार-बार दुआ करने का ज़िक्र है ।
सुन्नत ये है कि आदमी तीन बार दुआ करे । हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ियाल्लाहु अन्हु) की रिवायत में है: नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम जब दुआ करते तो तीन बार दुआ करते, और जब सवाल करते तो तीन बार सवाल करते, फिर आप सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने तीन बार कहा: “ऐ अल्लाह! क़ुरैश को बर्बाद करदे ।” (बुख़ारी: २४०), (मुस्लिम: १७९४)