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अगर छींकने वाला ‘अल्हम्दु-लिल्लाह’ न कहे तो सुनने वाले का जवाब न देना सुन्नत है ।
जब छींकने वाले ने ‘अल्हम्दुलिल्लाह’ नहीं कहा तो सुनने वाले को उसका जवाब न देना सुन्नत है । हज़रत अनस (रज़ियाल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि “नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम के पास २ आदमी को छींक आई, आप सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने एक का जवाब दिया दूसरे का नहीं, तो उस आदमी ने कहा: ‘आपने उसे दुआ दी और मुझे नहीं! तो आप सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “उसने छींके के बाद ‘अल्हम्दुलिल्लाह’ कहा लेकिन तुम ने नहीं कहा ।” (बुख़ारी: ६२२५)
अबू-मूसा (रज़ियाल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “जब तुम में से छींकने वाला ‘अल्हम्दुलिल्लाह’ कहे तो उसके जवाब में ‘यर्हमुकल्लाह’ कहो, और अगर छींकने वाला ‘अल्हम्दुलिल्लाह’ नहीं कहता है तो उसके जवाब में ‘यर्हमुकल्लाह’ मत कहो ।” (मुस्लिम: २९९२)
लेकिन अगर शिक्षा और तर्बियत का स्थान हो, जैसे कि पिता अपने बेटे को या शिक्षक अपने छात्रों को, तो ऐसी स्थिति में कहा जाएगा कि कहो: ‘अल्हम्दु-लिल्लाह’ ताकि लोगों को इस सुन्नत में बारे में जानकारी हो सके ।
इसी प्रकार से अगर किसी को ज़ुकाम हो गया है तो वह ३ बार से ज़्यादा छींकता है तो तीसरी बार के बाद सुनने वाला जवाब न दे ।
इसकी दलील: हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ियाल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “तीन बार से ज़्यादा किसी की छींक का जवाब न दो इसलिए वह ज़ुकाम है ।” (अबू-दाऊद: ५०३४) और शैख़ अल्बानी (रहेमहुल्लाह) (मौक़ुफ़न और मर्फ़ुअन) ‘हसन’ कहा है । (सही अबू-दाऊद: ४/३०८ में देखिए)
सही मुस्लिम के एक हदीस से उसकी ताईद होती है, हज़रत सल्मा बिन अकवअ (रज़ियाल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि “नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम के पास एक आदमी को छींक आई तो आपने उसके जवाब में ‘यर्हमुकल्लाह’ कहा, फिर दूसरी बार उसको छींक आई तो आप सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने कहा: “इसको ज़ुकाम हुआ है ।” (मुस्लिम : ७६३)
ख़ुलासा यह हुआ कि २ हालतों में छींकने वाले का जवाब नहीं दिया जाएगा:
१) ‘अल्हम्दु-लिल्लाह’ न कहने के कारण ।
२) जब ३ बार से ज़्यादा छींक आजाए, इसलिए कि वह ज़ुकाम है ।