languageIcon
search
search
brightness_1 दाहिनी ओर से जूता पहनना सुन्नत है ।

जब जूता पहनने का इरादा होतो पहले दाहिने पैर में पहनना सुन्नत है । और जब जूता उतारने का इरादा होतो पहले बाएं पैर का उतारना सुन्नत है ।

 

इसकी दलील: हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ियाल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “तुम में से जब कोई शख्स़ जूता पहने तो पहले दाहिने पैर में पहने और जब उतारना चाहे तो पहले बाएं पैर का उतारे । ताकि पहनने में पहले दाहिने से शुरू करे और उतारने में बाएं से शुरू करे ।” (बुख़ारी: ५८५६)

एक हदीस में है: “तुम में से कोई भी एक जूते में न चले, या तो दोनों जूते पहने या दोनों को उतार दे ।” (मुस्लिम: २०९७)

इन दो हदीसों में ३ सुन्नतें बयान हुई हैं:

१) जूता पहनने में दाहिने पैर से शुरू करे ।

२) जूता उतारने में बाएं पैर से शुरू करे ।

३) या तो दोनों जूते पहने या दोनों को उतार दे, एक जूते में न चले ।

brightness_1 सफ़ेद कपड़ा पहनना सुन्नत है ।

सफ़ेद रंग के कपड़े पहनना सुन्नत है । हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियाल्लाहु अन्हुमा) बयान करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “कपड़ों में सफ़ेद रंग का कपड़ा पहनो, यह तुम्हारे बेहतरीन कपड़ों में से हैं, और उन्हीं सफ़ेद कपड़ों में कफ़न दो ।” (अहमद: २२१९), (अबू-दाऊद: ३८७८), (तिर्मिज़ी: ९९४) और शैख़ अल्बानी (रहेमहुल्लाह) ने ‘सही’ कहा है । (सहीहुल्-जामेअ १/२६७ में देखिए)

हमारे शैख़ इब्ने उसैमीन (रहेमहुल्लाह) कहते हैं: “यह हदीस तमाम सफ़ेद कपड़ों को शामिल है जैसे: कुर्ता, पाएजामा,  तहबंद और दूसरे कपड़े, बेहतर यह है कि ये सफ़ेद रंग के हों, लेकिन अगर कोई दूसरे रंग का भी पहनता है तो कोई हर्ज की बात नहीं है बशर्ते वह कपड़ा औरतों केलिए ख़ास न हो ।” (शर्हो रियाज़ुस्सालेहीन २/१०८७ में देखिए)

brightness_1 ख़ुश्बू लगाना सुन्नत है ।

हज़रत अनस (रज़ियाल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “दुनिया की चीजों में मुझे पत्नी और ख़ुश्बू बहुत पसंद है, और मेरी आँखों की ठंडक नमाज़ में रख दी गई है ।” (अहमद: १२२९३), (निसाई: ३९४०) और शैख़ अल्बानी (रहेमहुल्लाह) ने  ‘हसन सही’ कहा है । (सही निसाई में देखिए)

और जहाँ तक ये बात कि: “तीन चीजें मुझे बहुत पसंद हैं” ये हदीस ज़ईफ़ है ।

और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम इस बात को नापसंद करते थे कि उनके शरीर से दुर्गन्ध (बदबू) आए । हज़रत आएशा (रज़ियाल्लाहु अन्हा) बयान करती हैं कि: “नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम इस बात को बहुत नापसंद करते कि उनके शरीर से बदबू आए ।” (बुख़ारी: ६९७२)

ख़ुश्बू का उपहार (तोहफ़ा) लौटाना मकरूह है ।

हज़रत अनस (रज़ियाल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ख़ुश्बू लौटाया नहीं करते थे ।” (बुख़ारी: २५८२)