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brightness_1 घर से वज़ू करके निकलना सुन्नता है, ताकि हर क़दम पर नेकी मिले ।

हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “मर्द की जमाअत के साथ पढ़ी हुई नामज़ उसके घर या बाज़ार में पढ़ी हुई नमाज़ से २० गुणा से अधिक सवाब मिलता है । यह इस प्रकार से कि जब कोई अच्छी तरह से वज़ू करता है और मस्जिद आता है, और केवल नामज़ ही के इरादे से आता है तो उसके हरेक क़दम के बदले नेकी और दूसरे पर गुनाह मिटा दिया जाता है यहाँ तक वह मस्जिद में दाख़िल हो जाए । और जब मस्जिद में दाख़िल हो जाता है तो वह नमाज़ में ही रहता है जब तक नमाज़ उसको रोके रखती है । और फ़रिश्ते भी उस शख्स़ केलिए रहमत की दुआएँ करते हैं जबतक वह नमाज़ की जगह में रहता है: ‘ऐ अल्लाह! उसपर रहम फ़रमा, ऐ अल्लाह! उसे माफ़ करदे, ऐ अल्लाह! उसकी तौबा क़बूल फ़रमा’ जब तक वह किसी को तकलीफ़ न दे और वज़ू न टूटे ।” (मुस्लिम: ६४९)

brightness_1 दो रकअत तहीयतुल्-मस्जिद पढ़ना ।

अगर कोई नमाज़ केलिए जल्दी आए तो उसके लिए सुन्नत यह है बिना २ रकअत पढ़े न बैठे ।

हज़रत क़तादा (रज़ियल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “जब तुम में से कोई मस्जिद में दाख़िल हो तो बिना २ रकअत पढ़े न बैठे ।” (बुख़ारी: ११६३), (मुस्लिम: ७१४)  

हाँ, अगर नमाज़ से पहले सुन्नते-मोअक्कदा है तो उसी को पढ़ लेना काफ़ी होगा जैसे: फ़जर और ज़ुहर के समय, इस स्थिति में तहीयतुल्-मस्जिद पढ़ने की ज़रूरत नहीं है ।  इसी प्रकार अगर कोई चाश्त की नमाज़ पढ़ने केलिए या वित्र पढ़ने केलिए या फ़र्ज़ पढ़ने केलिए मस्जिद में आया तब भी उसी नमाज़ का पढ़ लेना काफ़ी है । अलग से तहीयतुल्-मस्जिद मस्जिद की ज़रूरत नहीं है, इसलिए कि तहीयतुल्-मस्जिद का मक़सद नमाज़ के माध्यम से मस्जिद को आबाद रखना है ।

brightness_1 मर्दों केलिए पहली सफ़ में आने की कोशिश करना सुन्नत है ।

मर्दों केलिए पहली सफ़ में आने की कोशिश करना सुन्नत है । मर्दों केलिए पहली सफ़ और औरतों केलिए उसकी अंतिम सफ़ सबसे अफ़ज़ल है ।

हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “मर्दों में सबसे अच्छी सफ़ पहली है और सबसे कमतर सफ़ अंतिन सफ़ है, और औरतों में बेहतरीन सफ़ अंतिन सफ़ है और सबसे कमतर पहली सफ़ है ।” (मुस्लिम : ४४०)

इस हदीस का मतलब ये है कि जब मर्द और औरतें एक साथ जमाअत से नमाज़ पढ़े और उनके बीच में कोई दीवार न हो, तो उस समय औरतों की अंतिन सफ़ सबसे अच्छी सफ़ होगी, क्यूंकि इसमें उसके लिए ज़्यादा पर्दा है । या मर्द और औरतों में दीवार या और किसी चीज़ का पर्दा है या उनके लिए मस्जिद में अलग से नमाज़ पढ़ने की जगह बना दी गई है जैसा आज हमारी अक्सर मस्जिदों में ऐसा ही है तो इस स्थिति  में औरत की पहली सफ़ ही अफ़ज़ल होगी । शैख़ इब्ने-बाज़ और शैख़ इब्ने उसैमीन (रहेमहुमुल्लाह) ने इसी बात को पसंद किया है, इसलिए कि इस स्थिति में अंतिन सफ़ में खड़े होने का कारण ख़त्म हो गया, तो अफ़ज़ल का हुक्म अपनी असल सूरत में बाक़ी रहेगा ।

पहली सफ़ की फ़ज़ीलत में कुछ हदीसें:

हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “अगर लोगों को अज़ान और पहली सफ़ का अज्र व् सवाब मालूम हो जाए और उसके लिए चिट्ठी डालनी पड़े तो लोग चिट्ठी डालकर आने की कोशिश करेंगे । यदि उसको मालूम होजाए कि नमाज़ केलिए जल्दी आने का क्या अज्र व् सवाब है तो उसके लिए एक-दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश करें । यदि उनको मालूम होजाए कि इशा और सुबह की नमाज़ का क्या अज्र व् सवाब है तो वह ज़मीन के बल घसीटते हुए आएँ ।” (बुख़ारी: ६१५), (मुस्लिम: ४३७)