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मग़रिब से पहले २ रकअत सुन्नत पढ़ना ।
अब्दुल्लाह बिन मुग़फ्फ़ल (रज़ियल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “मग़रिब से पहले नमाज़ पढ़ो, तीसरी बार में कहा: ‘जो पढ़ना चाहे’ ताकि लोग इसे नियमित सुन्नत न बना लें ।” (बुख़ारी: ११८३)
अज़ान और इक़ामत के बीच में २ रकअत पढ़ना सुन्नत है ।
फ़जर और ज़ोहर की सुन्नते-मोअक्कदा पढ़ने की वजह से अब अलग से २ रकअत पढ़ने की ज़रूरत नहीं है, यही काफ़ी होंगी । हाँ, अगर कोई शख्स़ मस्जिद में बैठा हो और इसी बीच अस्र या इशा की अज़ान हो जाए तो सुन्नत ये है वो उठे और २ रकअत पढ़े ।
इसकी दलील:
अब्दुल्लाह बिन मुग़फ्फ़ल (रज़ियल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने फ़रमाया: “हर दो अज़ानों के बीच में नमाज़ है” ये बात आपने तीन बार कही, तीसरी बार में कहा: ‘जो पढ़ना चाहे’ ।” (बुख़ारी: ६२४), (मुस्लिम: ८३८)
इस में कोई शक नहीं कि मग़रिब से पहले और दो अज़ानों के बीच में २ रकअत पढ़ना सुन्नते-मोअक्कदा की तरह से नहीं है इसलिए कभी छोड़ा भी जा सकता है । क्यूंकि आप सल्लल्लाहु अलैहे व् सल्लम ने तीसर बार कहा: ‘जो पढ़ना चाहे’ ।